Thursday 15 November 2018

My Favourite statements from Hindu Philosophy of Living Life

This is what our religious books say and this is what, is our 'sanatan' dharma. It contains several points but I like one point the most and that is, 'see God in everything and respect those things accordingly':

1. गीता अध्याय-11 श्लोक-55 / Gita Chapter-11 Verse-55

मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्त: संग्ङवर्जित: ।
निर्वैर: सर्वभूतेषु य: स मामेति पाण्डव ।।55।।


हे अर्जुन[1] ! जो पुरुष केवल मेरे ही लिये सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को करने वाला है, मेरे परायण है, मेरा भक्त है, असक्तिरहित है और सम्पूर्ण भूत प्राणियों में वैरभाव से रहित है- वह अनन्य भक्ति युक्त पुरुष मुझको ही प्राप्त होता है ।।55।।
Arjuna, he who performs all his duties for my sake, depends on me, is devoted to me; has no attachment, and is free from malice towards all beings, reaches me. (55)
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2. Śrīmad Bhāgavata Mahā Purāṇa, skandh 3, chapter 29, shlok 21-27/श्रीमद्भागवत महापुराण, तृतीय स्कन्ध, अध्याय 29, श्लोक 21-27: (माता देवहूति से प्रभु (कपिल मुनी)):

मैं आत्मारूप से सदा सभी जीवों में स्थित हूँ; इसलिये जो लोग मुझ सर्वभूत स्थित परमात्मा का अनादर करके केवल प्रतिमा में ही मेरा पूजन करते हैं, उनकी वह पूजा स्वाँग मात्र है। मैं सबका आत्मा, परमेश्वर सभी भूतों में स्थित हूँ; ऐसी दशा में जो मोहवश मेरी उपेक्षा करके केवल प्रतिमा के पूजन में ही लगा रहता है, वह तो मानो भस्म में ही हवन करता है। जो भेददर्शी और और अभिमानी पुरुष दूसरे जीवों के साथ वैर बाँधता है और इस प्रकार उनके शरीरों में विद्यमान मुझ आत्मा से ही द्वेष करता है, उसके मन को कभी शान्ति नहीं मिलती।
माताजी! जो दूसरे जीवों का अपमान करता है, वह बहुत-सी घटिया-बढ़िया सामग्रियों से अनेक प्रकार के विधि-विधान के साथ मेरी मूर्ति का पूजन भी करे तो भी मैं उससे प्रसन्न नहीं हो सकता। मनुष्य अपने धर्म का अनुष्ठान करता हुआ तब तक मुझ ईश्वर की प्रतिमा आदि में पूजा करता रहे, जब तक उसे अपने हृदय में एवं सम्पूर्ण प्राणियों में स्थित परमात्मा का अनुभव न हो जाये। जो व्यक्ति आत्मा और परमात्मा के बीच में थोड़ा-सा भी अन्तर करता है, उस भेददर्शी को मैं मृत्युरूप महान् भय उपस्थित करता हूँ। अतः सम्पूर्ण प्राणियों के भीतर घर बनाकर उन प्राणियों के ही रूप में स्थित मुझ परमात्मा का यथायोग्य दान, मान, मित्रता के व्यवहार तथा समदृष्टि के द्वरा पूजन करना चाहिये।

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3. Chandogya Upanishad/छांदोग्योपनिषद् 3.14.1:


'सर्वं खल्विदं ब्रह्म'
All this is Brahman.

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Dedication: This blogpost is dedicated to all my friends who inspired me to read religious books...

Hare Krishana...

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